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बाबा का दिमाग चल गया है…धीरेंद्र शास्त्री के बयान पर मुस्लिम समुदाय का पलटवार

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inkhbar News
  • Last Updated: June 7, 2025 10:22:38 IST

Bakrid 2025: धीरेंद्र शास्त्री के ताजा बयान ने धार्मिक और सामाजिक हलकों में हलचल मचा दी है. बागेश्वर धाम प्रमुख ने हाल ही में यह कहा था कि ईद पर कुर्बानी के नाम पर बेजुबान जानवरों को मारना बंद होना चाहिए. उनके इस बयान पर अलीगढ़ में नमाज़ के बाद मुस्लिम समुदाय की ओर से तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली.

धीरेंद्र शास्त्री के बयान पर मुस्लिम समुदाय की तीखी प्रतिक्रिया

स्थानीय मुस्लिम नेताओं और नमाज़ियों ने शास्त्री के बयान की आलोचना करते हुए कहा कि आज ये बकरे की कुर्बानी से मना कर रहे हैं, कल को रोज़ा रखने से भी मना करेंगे. एक व्यक्ति ने तीखे शब्दों में कहा ऐसे बयान देने वालों का दिमाग चल गया है. यह देश के अमन और सौहार्द्र के माहौल को बिगाड़ने की कोशिश है. विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि यह बयान न सिर्फ धार्मिक भावनाओं को आहत करता है, बल्कि इससे समुदायों के बीच तनाव पैदा हो सकता है. उन्होंने कहा कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में सभी को अपनी आस्था और परंपराओं का पालन करने का अधिकार है.

AMU प्रोफेसर ने भी जताई थी आपत्ति

बकरीद से पहले कुर्बानी को लेकर देशभर में बहस तेज़ हो गई है. इससे पहले अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के थियोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर रिहान अख्तर ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी. उन्होंने शास्त्री के बयान को खारिज करते हुए कहा कि अब क्या देश में हर बात उन्हीं की मानी जाएगी? आज कुर्बानी पर आपत्ति है, कल नमाज़, रोज़ा और ज़कात को लेकर भी सवाल उठेंगे. रिहान अख्तर ने आगे कहा कि हज के दौरान कुर्बानी इस्लाम का अहम हिस्सा है. अगर कोई व्यक्ति कुर्बानी नहीं करता तो उनका हज अधूरा माना जाता है. इसलिए यह केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि धार्मिक अनिवार्यता है.

हालाँकि प्रोफेसर अख्तर ने यह भी कहा कि सरकार द्वारा प्रतिबंधित पशुओं की कुर्बानी नहीं की जानी चाहिए और सभी को सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए. लेकिन उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि किसी एक व्यक्ति के कहने पर धार्मिक आस्थाओं को बदला नहीं जा सकता.

धीरेंद्र शास्त्री ने क्या कहा

बता दें कि धीरेंद्र शास्त्री ने अपने बयान में बलि प्रथा को अमानवीय बताते हुए कहा था कि यह परंपराएं उस समय की रही होंगी जब इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था. आज के समय में समाज को ऐसे बदलाव की ज़रूरत है जहां किसी भी बेजुबान जीव की हत्या न हो. इस पूरे घटनाक्रम ने धार्मिक विचारधाराओं के टकराव को एक बार फिर चर्चा के केंद्र में ला दिया है.