Gujarat Congress : गुजरात में कांग्रेस पार्टी एक बार फिर राजनीतिक अस्तित्व के संकट से जूझ रही है. हाल ही में विसावदर और कडी विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा. यह पराजय सिर्फ दो सीटों की नहीं, बल्कि उस बड़े संघर्ष के विफलता को दिखाता है जिसे खत्म कर कांग्रेस गुजरात में अपनी खोई जमीन वापस पाने के लिए लड़ रही है. गौरतलब है कि जहां एक ओर कांग्रेस नेतृत्व खासकर राहुल गांधी बार-बार यह दावा करते रहे हैं कि पार्टी राज्य में बीजेपी को कड़ी टक्कर देगी, वहीं जमीनी सच्चाई इससे कोसों दूर नजर आती है. ऐसे में यह बड़ा सवाल उठता है, क्या 2027 के विधानसभा चुनाव तक कांग्रेस गुजरात में पुनर्जीवित हो पाएगी ?
बता दें कि उप चुनाव में विसावदर सीट पर आम आदमी पार्टी (AAP) के उम्मीदवार गोपाल इटालिया ने जीत दर्ज की, जबकि कड़ी सीट पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) को सफलता मिली. कांग्रेस दोनों ही सीटों पर बुरी तरह पिछड़ गई. हार के बाद गुजरात कांग्रेस अध्यक्ष शक्ति सिंह गोहिल ने इस्तीफे की पेशकश कर दी जिससे राज्य में पार्टी के नेतृत्व पर फिर सवाल उठने लगे हैं. अब आंकड़ों में समझे तो 2017 में जिस कांग्रेस के पास 77 सीटों का जनमत था, 2022 वही कांग्रेस राज्य में केवल 17 सीटें जीत पाई, यह गिरावट दिखाता है कि राज्य में है कि कांग्रेस की राजनीतिक पकड़ तेजी से कमजोर हो रही है और जमीनी स्तर पर कांग्रेस की स्थिति तो उपचुनाव के परिणाम बयां कर ही रहा…
उधर 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने गुजरात का दौरा किया और पार्टी को पुनर्गठित करने का वादा किया. उन्होंने पायलट प्रोजेक्ट के तहत जिला कांग्रेस कमेटियों (DCC) के अध्यक्षों की नियुक्तियां की लेकिन ये नियुक्तियां भी विवादों से अछूती नहीं रहीं. पूर्व सांसदों और वर्तमान नेताओं का आरोप है कि इन नियुक्तियों में सामूहिकता और समावेशिता की कमी थी. उदाहरण के लिए पहली सूची में किसी मुस्लिम नेता को शामिल नहीं किया गया, जिससे पार्टी के भीतर ही असंतोष फैल गया. हालांकि बाद में संशोधन कर गलती को सुधारते हुए भरूच में एक मुस्लिम नेता को अध्यक्ष बनाया गया.
पार्टी ( Congress) के कई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष शक्ति सिंह गोहिल को स्वतंत्र रूप से काम करने की पूरी छूट नहीं दी गई. नियुक्तियों और रणनीति के अधिकतर निर्णय दिल्ली से थोपे जाते हैं, जिससे स्थानीय नेतृत्व की भूमिका सीमित हो जाती है. जो दिखाता है कि कैसे प्रदेश स्तर पर हो रही गुटबाजी पार्टी के लिए एक बड़ी बाधा बन रही है. मीडिया में अधिकारिक तौर पर एक युवा नेता ने कहा DCC नियुक्तियों की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं थी. इससे नेतृत्व के प्रति भरोसा और कार्यकर्ताओं का उत्साह दोनों प्रभावित हुए हैं.
वहीं वोट शेयर के आकांडें भी कांग्रेस के हित में नहीं है, पार्टी वहां भी पिछड़ रही है. उप चुनाव को देखें तो विसावदर में कांग्रेस को महज 8% वोट मिले, जबकि कडी में पार्टी का वोट शेयर 4% घट गया. यह गिरावट संकेत है कि पार्टी जनता के बीच अपनी पकड़ खो चुकी है. इसके अलावा राहुल गांधी की शादी का घोड़ा और रेस का घोड़ा जैसी टिप्पणियों से कई पुराने और वफादार नेता नाराज हैं. एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हम दशकों से पार्टी में हैं, लेकिन इस तरह की तुलना हमें अपमानजनक लगती है.
पार्टी की मौजूदा स्थिति ये है कि कुछ युवा नेता खुले तौर पर कह रहे हैं…आज की स्थिति में हम 50 सीटें भी नहीं जीत सकते. सवाल यह नहीं है कि कांग्रेस सरकार बनाएगी या नहीं सवाल यह है कि क्या पार्टी विपक्ष की भूमिका निभाने लायक भी रह पाएगी? राहुल गांधी ने गुजरात में बीजेपी को हराने की बात कही थी, लेकिन मौजूदा हालात में यह लक्ष्य दूर -दूर तक नजर नहीं आ रहा है. पार्टी के अंदर से ही अब आवाजें उठ रही हैं, न सिर्फ आत्मचिंतन की जरूरत है, बल्कि एक नया, निर्णायक और स्थानीय नेतृत्व भी जरूरी है.
अगर बात करें तो विकल्पों की तो एक बात तो सच है कि गुजरात में कांग्रेस ( Congress) की हालत बेहद नाजुक है. राहुल गांधी की कोशिशों को सफल बनाने के लिए सिर्फ घोषणाएं और नियुक्तियां काफी नहीं हैं. उन्हें जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं का विश्वास जीतना होगा, स्थानीय नेतृत्व को सशक्त बनाना होगा और गुटबाजी से ऊपर उठकर संगठन को एकजुट करना होगा. 2027 तक कांग्रेस के पास समय जरूर है, लेकिन अब उसे केवल रणनीति नहीं, बल्कि साहसिक फैसलों की जरूरत है. क्या आप मानते हैं कि कांग्रेस 2027 तक गुजरात में वापसी कर पाएगी?