Bihar vidhan sabha chunav: बिहार की राजनीति अब चुनावी रंग में रंगने लगी है. इस वर्ष अक्टूबर-नवंबर में राज्य में चुनाव होने है..जिसको लेकर सियासी पारा चढ़ता जा रहा है. सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और विपक्षी महागठबंधन के बीच सीधी टक्कर की स्थिति तो बनती दिख रही है. एक साथ कई तीसरा खेमा भी है जो इस बार के चुनाव में दोनों खेमों की रणनीतियां, जातीय समीकरण, और जमीनी पकड़ चुनावी नतीजों को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकते हैं. अभी जब चुनाव में करीब चार महीने का समय तो चुनाव से पहले पार्टियों की तैयारी कैसी है और अगर अभी चुनाव हुआ तो किसकी सरकार बनेगी ? चलिए समझते हैं विस्तार से…
राजद फिलहाल इंडिया गठबंधन का सबसे बड़ा घटक है,जिसके पास 77 विधायक हैं. पार्टी की चुनावी तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. मीडिया रिपोर्ट की मानें तो वह 155 से 165 सीटों पर उम्मीदवार उतार सकती है. पार्टी ने अति पिछड़ी जाति से आने वाले वरिष्ठ नेता मंगनी लाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश की है. चुनावी तैयारियों को लेकर राजद के प्रवक्ता प्रो. नवल किशोर का कहना है कि पार्टी बूथ स्तर तक पहुंचकर आमजन से जुड़ने और उन्हें मतदान के लिए तैयार करने में जुटी है. उनका दावा है कि पार्टी की रणनीति इतनी मजबूत और अदृश्य है कि प्रतिद्वंदी उसे समझ भी नहीं पाएंगे. हालांकि राजनीतिक जानकार मानते हैं कि जिन मुद्दों के सहारे राजद जनता को जोड़ना चाहती है, वे जमीनी हकीकत से दूर प्रतीत होते हैं. पार्टी की आक्रामक शैली और संगठनात्मक शक्ति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन राजद के लिए जनाधार को धार देने की चुनौती अब भी बरकरार है.
बिहार में कांग्रेस के पास 19 विधायक हैं. एक दौर में यह पार्टी बिहार की सबसे मजबूत राजनीतिक शक्ति थी, लेकिन अब इसका आधार राजद के सहयोग पर निर्भर करता नजर आता है. पार्टी ने हाल में आम लोगों से संवाद बढ़ाने की कोशिश की है. हालांकि जानकारों का मानना है कि कांग्रेस का चुनावी अभियान अब भी आक्रामकता से कोसों दूर है. प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार दावा कर रहे हैं कि इस बार परिणाम अप्रत्याशित होंगे. इसके साथ साथ वामपंथी दल अपने सीमित शक्ति और ठोस पकड़ के साथ मैदान में दिख रही है. बिहार में वाम दलों के पास कुल 15 विधायक हैं जिसमें
बता दें कि भाकपा (माले) ने सीमित इलाकों में गहरी पैठ बनाई है और यह पार्टी लगातार जमीनी स्तर पर काम कर रही है. दरौली (सिवान) से विधायक सत्यदेव राम कहते हैं कि इस बार पार्टी का प्रदर्शन पहले से बेहतर होगा. वहीं माकपा और भाकपा भी अपने पुराने जनाधार को पुनर्जीवित करने की कोशिशों में जुटी हैं. हाल ही में भाकपा के राष्ट्रीय महासचिव डी राजा पटना आए और कार्यकारिणी बैठक में चुनावी तैयारियों की समीक्षा की.
2020 के चुनाव में NDA की सहयोगी रही विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के नेता मुकेश सहनी ने इस बार 60 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है. हालांकि पिछली बार पार्टी के तीनों विधायक बाद में पाला बदल चुके हैं और फिलहाल विधानसभा में पार्टी का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. पार्टी की मांग को लेकर जानकारों का मानना है कि वीआईपी का यह दावा ज़मीनी हकीकत से परे है. पार्टी का सांगठनिक ढांचा और जनाधार बेहद सीमित है. फिर भी सहनी का दावा है कि वीआईपी कार्यकर्ता पूरे राज्य में चुनाव की तैयारी में जुटे हैं और INDIA गठबंधन की सरकार बनाने में वे अहम भूमिका निभाएंगे.
भाजपा और जदयू इस बार मुद्दों से हटकर चुनावी रणनीति को बूथ स्तर तक ले जाने की तैयारी कर रही हैं. भाजपा की कोशिश है कि वह सामाजिक गठजोड़ और केंद्र सरकार की योजनाओं को वोट में बदले. वहीं जदयू मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सुशासन और विकास कार्यों को भुनाने की कोशिश में जुटी है. राजद की रणनीति के जवाब में एनडीए का फोकस ज्यादा वास्तविकता आधारित एजेंडा और सीधे लाभार्थी कनेक्ट पर है.
चिराग पासवान और जीतन राम माझी भी इस बार सहयोगी के रूप में बड़ी दावेदारी कर रहे हैं. इसके अलावा लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियों के प्रदर्शन और विधानसभा चुनाव के लिए सीटों की मजबूत दावेदारी एक बार को NDA को परेशान कर सकती है.सीटों के हिसाब से अभी NDA में सबसे अधिक भाजपा के पास 78 विधायक है, जदयू के पास 45 और HUM के पास 4 विधायक हैं. बिहार में इस बार का चुनाव मुद्दों की नहीं बल्कि संगठनों की लड़ाई दिख रहा है. विपक्षी INDIA गठबंधन के भीतर अनेक दलों की स्थिति अभी भी अस्थिर और दावों से ज्यादा अपेक्षाओं पर टिकी हुई है. वहीं एनडीए धरातल पर ज्यादा संगठित और तैयार नजर आ रहा है. यही वजह है कि जानकार मानते हैं बिहार में विपक्ष की दिशा फिलहाल हकीकत से दूर और फसाने के करीब दिख रही है. फिर भी चुनावी राजनीति में सब कुछ संभव है और अंतिम निर्णय तो जनता के मत से ही होगा.