Bihar Voter List Verification: बिहार में अगले कुछ महीनों में विधानसभा का चुनाव होना है,जिसको लेकर चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई है. हलांकि इससे पहले चुनाव आयोग द्वारा राज्य में वोटर लिस्ट का वेरिफिकेशन अभियान शुरू किए जाने से सियासी तापमान चढ़ा हुआ है.25 जून से शुरू हुई यह वेरिफिकेशन प्रक्रिया 25 जुलाई तक चलेगी. जिसको लेकर एक तरफ जहां आम जनता परेशान हैं वहीं विपक्षी दलों के साथ-साथ एनडीए (NDA) के कुछ घटक दलों के भी होस उड़े हुए हैं.

चुनाव आयोग क्या कर रहा है?

जानकारी के लिए बता दें कि चुनाव आयोग ने बिहार में वोटर लिस्ट का व्यापक सत्यापन (verification) शुरू किया है. इसके तहत हर मतदाता को एक व्यक्तिगत गणना फॉर्म (Individual Enumeration Form) भरकर देना होगा. खासकर उन लोगों को जो 1 जनवरी 2003 के बाद मतदाता बने हैं या जुलाई 1987 के बाद जन्मे हैं,उन्हें अपनी नागरिकता और उम्र का प्रमाण देने के लिए बर्थ सर्टिफिकेट, पासपोर्ट, या किसी शैक्षणिक प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज दिखाने होंगे.

चुनाव आयोग के मुताबिक यह कदम राज्य में फर्जी वोटरों की पहचान और घुसपैठ के आरोपों की जांच के तहत उठाया गया है.आयोग का कहना है कि इससे केवल वास्तविक वोटरों को ही वोट डालने का अधिकार सुनिश्चित किया जा सकेगा.

विपक्ष क्यों नाराज है?

चुनाव आयोग के इस फैसले को लेकर विपक्षी दलों,खासकर राजद (RJD),कांग्रेस और वाम दलों ने इस कवायद पर गंभीर आपत्तियां जताई हैं. इन दलों का कहना है कि आयोग की यह प्रक्रिया चुनाव से कुछ ही महीने पहले शुरू की गई है, जिससे लोगों को दस्तावेज जुटाने में दिक्कत होगी. बिहार में गरीबी, अशिक्षा और प्रशासनिक कमजोरियों के चलते बड़ी संख्या में लोगों के पास चुनाव आयोग द्वारा मांगे गए 11 में से कोई भी दस्तावेज नहीं हैं और इस प्रक्रिया से 2 से 3 करोड़ वोटर वोट डालने से वंचित हो सकते हैं, जिनमें अधिकतर गरीब,पिछड़े और ग्रामीण तबके के लोग हैं.

मामले में कांग्रेस ने यह सवाल भी उठाया है कि अगर 2003 के बाद कभी भी वोटर लिस्ट का ऐसा वेरिफिकेशन नहीं हुआ तो क्या उस समय से अब तक कराए गए सभी चुनाव अवैध थे? राजद नेता तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग पर बीजेपी के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया और कहा कि ऐसा लगता है मानो चुनाव आयोग, बीजेपी का आयोग बन गया है.

एनडीए में भी चिंता

हालांकि परेशानियां सिर्फ विपक्षी चेहरे पर नहीं है बल्कि एनडीए की नारजगी भी है. भले ही आधिकारिक रूप से इस प्रक्रिया का विरोध नहीं किया है, लेकिन बीजेपी,जेडीयू और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के कई नेताओं ने इस पर सवाल उठाए हैं. जिनका सवाल है कि क्या चुनाव आयोग इतने कम समय में यह वेरिफिकेशन पूरा कर पाएगा? क्या इससे बिहार के असली वोटर भी छूट जाएंगे? क्या यह प्रक्रिया अति पिछड़ी जातियों और ऊंची जातियों के गरीबों के लिए मुश्किल खड़ी नहीं करेगी?

आम जनता क्यों है परेशान ?

वहीं आम जनता में भी चिंता है कि इतने कम समय में कैसे सारे कागजात उपलब्ध कारएं जाएंगे. भारत के रजिस्ट्रार जनरल के आंकड़ों के मुताबिक 2000 में बिहार में केवल 1.19 लाख जन्म ही पंजीकृत हुए, जबकि उस वर्ष राज्य में अनुमानित 3.2 करोड़ बच्चों का जन्म हुआ था. 2001 की जनगणना के अनुसार बिहार की जनसंख्या 8.3 करोड़ थी,जो 2011 में बढ़कर 10.4 करोड़ हो गई. इस दौरान केवल 73.91 लाख जन्म पंजीकृत हुए.

इसका मतलब है कि करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनके पास वैध बर्थ सर्टिफिकेट ही नहीं है. ऐसे में अगर चुनाव आयोग दस्तावेजों के बिना लोगों को वोटर लिस्ट से बाहर कर देता है, तो यह एक बड़े चुनावी संकट को जन्म दे सकता है. बिहार में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन का यह अभियान एक तरफ जहां चुनाव आयोग की ओर से पारदर्शिता और शुद्धि का दावा करता है वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी खड़े करता है कि क्या यह प्रक्रिया सही समय पर, उचित साधनों और पर्याप्त सूचना के साथ शुरू की गई है? क्या इससे लोकतंत्र मजबूत होगा या कमज़ोर तबकों की हिस्सेदारी सीमित हो जाएगी?