Bihar Crime News : हालिया हिंसा और हत्या की घटनाओं के कारण बिहार में इन दिनों नीतीश सरकार के कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठ रहे हैं.पिछले कुछ दिनों में हुई हत्या और हिंसा की घटना ने एक बार फिर राज्य की कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. पूर्णिया जिले से शुरू हुई भयावह हत्याकांड के बाद से, बिहार के विभिन्न हिस्सों में हुई कई अन्य घटनाओं ने राज्य सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों को सरकार पर हमलावर होने का मौका दिया है.
पूर्णिया जिले के टेटगामा गांव में एक ही परिवार के पांच लोगों की हत्या कर दी गई. आरोप है कि परिवार के सदस्यों को डायन बताकर पीट-पीट कर मार डाला गया. यह घटना न सिर्फ एक जघन्य हत्या है,बल्कि बिहार में अंधविश्वास के फैलाव का भी बड़ा उदाहरण बनकर सामने आई है. इस तरह की घटनाएं राज्य की प्रगति और विकास के दावे पर सवाल उठाती हैं. यह घटना बिहार में बढ़ते अंधविश्वास के साथ-साथ कानून-व्यवस्था की स्थिति पर भी गंभीर चिंता का विषय बन गई है.
पूर्णिया में हुए इस हत्याकांड से पहले बिहार के सिवान जिले में एक ही परिवार के तीन लोगों की हत्या कर दी गई. 4 जुलाई को राजधानी पटना में व्यापारी गोपाल खेमका की हत्या, फिर एक और व्यापारी विक्रम झा की हत्या ने राज्य की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए.
यदि हम आंकड़ों पर नजर डालें तो यह साफ दिखाई देता है कि बिहार में हत्या की घटनाओं में इजाफा हुआ है. 4 जुलाई से 7 जुलाई तक सिर्फ बिहार में 12 लोग ऐसी घटनाओं का शिकार हुए हैं, तो राज्य में पिछले कुछ समय में दूसरे हिंसक घटनाओं की भी भरमार रही है. 2022 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में कुल 2,930 हत्या की घटनाएं दर्ज की गई, यानी हर दिन औसतन 8 लोगों की हत्या.हालांकि बिहार में हो रही हत्याओं के मुकाबले उत्तर प्रदेश में ज्यादा रिपोर्ट की गई हैं. उत्तर प्रदेश में 2022 में हत्या के कुल 3,491 मामले दर्ज किए गए, जो हर दिन 9 हत्या की घटनाओं के बराबर हैं.
यूपी और बिहार के क्षेत्रफल और जनसंख्या घनत्व में अंतर है, फिर भी बिहार में अपराधों की बढ़ती दर और उनके कारण राज्य की कानून-व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं.राज्य में कानून-व्यवस्था का मुद्दा हमेशा से अहम रहा है और इस समय जब विधानसभा चुनाव नजदीक है तो यह मामला और भी गंभीर हो गया है. नीतीश कुमार की सरकार पर आरोप हैं कि उन्होंने सुशासन का जो दावा किया था, वह अब साबित होता हुआ नहीं दिख रहा है.
सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों बिहार में हत्या की वारदातों में अचानक इजाफा हो गया है और राज्य सरकार इस पर सख्ती से क्यों नहीं एक्शन ले रही है. बिहार की मौजूदा सरकार के खिलाफ यह आरोप भी लगाया जा रहा है कि अपराधियों के लिए राज्य में भय का माहौल समाप्त हो चुका है और आगामी चुनाव पर इसका असर दिख सकता है.
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बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति पर सवाल खड़ा करते हुए राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं. नीतीश सरकार की ब्रांडिंग सुशासन के तौर पर है,लेकिन अब वही सुशासन विपक्षी दलों के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गया है. विधानसभा चुनाव से पहले हर एक हत्या की घटना बिहार के प्रशासन और शासन व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर रही है.
बीते 72 घंटों में बिहार में हुई हत्याओं के अलावा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और केरल में भी हत्या की घटनाओं की रिपोर्ट दर्ज हुई हैं. आंकड़े यह भी बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में पिछले साल हत्या की 3,491 घटनाएं दर्ज की गई थीं, जबकि पंजाब में यह आंकड़ा 670 था.
बिहार में बढ़ती हत्या और हिंसा की घटनाएं सरकार और प्रशासन की विफलता की ओर इशारा कर रही हैं. विपक्षी दल इसे चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के लिए तैयार हैं, और बिहार के चुनावी माहौल में यह मुद्दा गरमाता जा रहा है. बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति पर अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या राज्य में सरकार की कमजोर प्रशासनिक संरचना है, जो अपराधियों को खुला मैदान दे रही है? क्या बिहार सरकार इस चुनौती का सामना करने में सक्षम होगी? इन सवालों के जवाब अब चुनावों के नजदीक और अहम हो गए हैं.