Supreme Court: बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में चुनाव से पहले वोटर लिस्ट का पुनरीक्षण का मामला लगातार गरमाया हुआ है। तमाम राजनीतिक दल इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने टाइमिंग को लेकर सवाल उठाया। बेंच ने गहन पुनरीक्षण करने को सही ठहराते हुए कहा कि साल 2003 में भी ऐसा किया गया था, लेकिन मामला यह है कि इसे पहले क्यों नहीं किया गया। कोर्ट ने सवाल उठाते हुए कहा कि चुनाव से ठीक पहले ही यह प्रक्रिया क्यों की जा रही है। जिस पर चुनाव आयोग के वकील ने जवाब देते हुए कहा कि इसमें कुछ गलत नहीं है और समय-समय पर संशोधन होता है। उनका कहना है कि समय के साथ-साथ मतदाता सूची में नामों को शामिल करने या हटाने के लिए उनका पुनरीक्षण जरूरी होता है।
इतना ही नहीं, निर्वाचन आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने सवाल करते हुए कहा कि अगर मतदाता सूची में संशोधन का अधिकार चुनाव आयोग के पास नहीं है तो फिर यह कौन करेगा? जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि यह सवाल ही नहीं है कि ऐसा क्यों हो रहा है। बात सिर्फ इतनी है कि इसे पहले क्यों नहीं किया गया। बेंच ने कहा कि विशेष गहन पुनरीक्षण की कवायद एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और यह लोकतंत्र की जड़ से जुड़ा है। आयोग ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत भारत में मतदाता बनने के लिए नागरिकता की जांच जरूरी है।
वहीं, सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से तीन मुद्दों पर जवाब मांगा। कोर्ट ने कहा क्या उसके पास मतदाता सूची में संशोधन करने, अपनायी गयी प्रक्रिया और यह पुनरीक्षण कब किया जा सकता है, उसका अधिकार है? इसके अलावा टाइमिंग का सवाल भी बेंच ने उठाया। कोर्ट ने कहा कि अगर आपको बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के अंतर्गत नागरिकता की जांच करनी है, तो आपने ये कदम पहले क्यों नहीं उठाया, अब थोड़ी देर हो चुकी है। इस पर निर्वाचन आयोग ने कोर्ट न्यायालय से कहा कि संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत भारत में मतदाता बनने के लिए नागरिकता की जांच जरूरी है।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की कोर्ट ने कहा कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में नागरिकता के मुद्दे को क्यों उठाया जा रहा है। यह गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण में दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड पर विचार न करने को लेकर निर्वाचन आयोग से सवाल किया।
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वहीं, एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण की अनुमति दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि SIR के तहत लगभग 7.9 करोड़ नागरिक आएंगे और उसमें भी मतदाता पहचान पत्र और आधार कार्ड पर भी विचार नहीं किया जा रहा है। इस मामले के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में 10 से ज्यादा याचिकाएं दायर की गयी हैं, जिनमें प्रमुख याचिकाकर्ता गैर-सरकारी संगठन ADR है।
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