Morari Bapu in Kashi: प्रसिद्ध कथावाचक मोरारी बापू को लेकर काशी में बड़ा बवाल हो गया है। मोरारी बापू शनिवार को 9 दिवसीय कथा कराने वाराणसी पहुंचे थे। उन्होंने शाम 4 बजे से कथा सुनाना शुरू किया। इससे पहले काशी विश्वनाथ धाम के दर्शन किए। लेकिन मामला तब फंसा जब संतों ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया। उनके पुतले तक फूंके गए। दरअसल मामला ये था कि मोरारी बापू की पत्नी का 2 दिन पहले ही निधन हुआ है, इसके बाद भी वो बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए पहुंच गए। कथा करनी भी शुरू कर दी। काशी के संतों का कहना है कि सूतक में आप दर्शन-पूजन या कथा नहीं कर सकते हैं।
विरोध पर क्या बोले मोरारी बापू
हो रहे विरोध प्रदर्शन पर मोरारी बापू ने कहा कि वो वैष्णव हैं। वैष्णव लोग पूजा-पाठ करना बंद नहीं करते हैं। भगवान का भजन करना सुकून है न कि सूतक। इस मामले पर विवाद नहीं होना चाहिए। हालांकि भड़के लोगों ने गोदौलिया चौराहा पर मोरारी बापू का पुतला दहन किया। इस मामले को अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने घोर निंदनीय बताया है। उनका कहना है कि मोरारी बापू को सूतक काल में कथा नहीं करनी चाहिए। धर्म से ऊपर उठकर वो अर्थ की कामना का कृत्य कर रहे, जो सरासर गलत है।
पाखंड फैला रहे मोरारी बापू
स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने मोरारी बापू पर पाखंड फैलाने का आरोप लगाया। धर्मशास्त्रों के मुताबिक राजा, योगी, यति और ब्रह्मचारी पर सूतक लगता है लेकिन मोरारी बापू तो गृहस्थ थे। ऐसे में कथा करके वो काशी में विनाश को निमंत्रण दे रहे हैं। ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सवाल उठाया कि मोरारी बापू बताएं कि कौन से वैष्णव ग्रंथ में ऐसा लिखा हुआ है कि पत्नी के निधन के बाद पति पर सूतक नहीं लगेगा?
काशी विश्वनाथ में प्रवेश कैसे किया
विशेश्वर शास्त्री द्राविड़ का कहना है कि धर्मसिंधु के अनुसार सात पीढ़ी तक सूतक लगता है। इसका वैष्णव, शैव और शाक्त से कोई संबंध नहीं है। उन्हें 16 दिनों तक सूतक की विधियों का पालन करना चाहिए था। सूतक में उन्होंने काशी विश्वनाथ में प्रवेश कैसे कर लिया। बता दें कि 14 जून से 22 जून तक कथा होना तय हुआ था। मोदी सरकार के ऑपरेशन सिंदूर से प्रेरित होकर आयोजकों ने इसका नाम ‘मानस सिंदूर’ दिया है।