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गाजियाबाद में स्वास्थ्य विभाग की घोर लापरवाही : ऑटो में कपड़ा बांधकर जुड़वा बच्चों को दिया जन्म

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inkhbar News
  • Last Updated: June 24, 2025 11:23:51 IST

Ghaziabad : गाजियाबाद के मोदीनगर से एक ऐसी घटना सामने आई है, जो न केवल हैरान करने वाली है, बल्कि स्वास्थ्य विभाग की लाचार व्यवस्था पर करारा तमाचा भी जड़ती है। दरअसल, मानवतापुरी इलाके की एक गर्भवती महिला को स्वास्थ्य विभाग की ओर से इंतजाम न होने की वजह से ऑटो में ही डिलीवरी करनी पड़ी है। यह प्रसव सड़क पर, ऑटो में कपड़े की ओट लेकर हुआ, बताया जा रहा है कि स्वास्थ्य विभाग की सुस्ती और लापरवाही ने महिला को अस्पताल की चारदीवारी तक पहुंचने का मौका ही नहीं दिया।

प्रसव पीड़ा में अस्पताल ले जाने की कोशिश, मगर…

जानकारी के अनुसार, महिला के पति सुदर्शन, जो पेशे से सिलाई का काम करते हैं, ने सोमवार सुबह पत्नी को तेज प्रसव पीड़ा होने पर तुरंत स्वास्थ्य विभाग की आशा कार्यकर्ता से संपर्क किया। आशा ने जल्द पहुंचने का वादा तो किया, लेकिन उनकी स्कूटी रास्ते में खराब हो गई। यह लापरवाही का पहला नमूना था। उधर, महिला की हालत बिगड़ती जा रही थी और प्रसव पीड़ा असहनीय होती जा रही थी। स्वास्थ्य विभाग की इस ढीली-ढाली व्यवस्था ने मजबूर पति को ऑटो किराए पर लेकर पत्नी को मोदीनगर के सीएचसी अस्पताल ले जाने के लिए मजबूर किया।

स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही उजागर

लेकिन बदकिस्मती ऐसी कि रास्ते में ही दर्द इतना बढ़ गया कि ऑटो को सीएचसी परिसर में ही रोकना पड़ा। वहां मौजूद लोगों और पति ने मिलकर कपड़े की आड़ बनाई और उसी ऑटो में महिला ने जुड़वा बच्चों को जन्म दे दिया। यह नजारा स्वास्थ्य विभाग की नाकामी का जीता-जागता सबूत है। अब सवाल ये है कि क्या यही है हमारा स्वास्थ्य तंत्र, जो एक गर्भवती महिला को सड़क पर प्रसव के लिए मजबूर कर देता है? डिलीवरी के बाद ही सीएचसी का मेडिकल स्टाफ मौके पर पहुंचा, जिसने तब जाकर महिला और नवजातों की देखभाल शुरू की। शुक्र है कि जच्चा और दोनों बच्चे स्वस्थ हैं, वरना यह लापरवाही किसी बड़े हादसे का कारण बन सकती थी।

पहले से पांच बेटियों की मां, अब जुड़वां बच्चों से खुशी

महिला पहले से ही पांच बेटियों की मां है, और अब जुड़वा बच्चों एक बेटा और एक बेटी के जन्म से परिवार में खुशी का माहौल है। लेकिन इस खुशी के पीछे स्वास्थ्य विभाग की शर्मनाक नाकामी छिपी है। यह घटना न केवल विभाग की सुस्ती को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे एक छोटी सी चूक किसी परिवार के लिए भयावह साबित हो सकती थी। स्वास्थ्य विभाग को यह समझना होगा कि आशा कार्यकर्ता की स्कूटी खराब होना कोई बहाना नहीं है यह उनकी व्यवस्था की बदहाली का प्रतीक है।

स्वास्थ्य विभाग पर गंभीर सवाल

यह घटना स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाती है। आखिर क्यों गर्भवती महिलाओं को समय पर बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पातीं? क्यों एक ऑटो को प्रसव कक्ष बनना पड़ता है? क्या स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी सिर्फ कागजों पर आंकड़े जुटाने तक सीमित है? यह समय है कि प्रशासन अपनी लापरवाही पर पर्दा डालने के बजाय ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए, ताकि भविष्य में कोई और महिला सड़क पर प्रसव के लिए मजबूर न हो।