bihar politics: बिहार की राजनीति में एक अद्भुत और अनोखी प्रक्रिया देखने को मिलती है, जिसे पलटी या गठबंधन बदलने की राजनीति कहा जा सकता है। यह एक ऐसा खेल है, जिसमें राजनीतिक दल और नेता अपने व्यक्तिगत हितों और सत्ता की चाहत के कारण समय-समय पर अपने पुराने गठबंधनों को तोड़ते हैं और नए राजनीतिक समीकरण बनाते हैं। बिहार की राजनीति में यह प्रक्रिया वर्षों से चली आ रही है और आज भी यह राजनीतिक परिदृश्य का एक अहम हिस्सा बनी हुई है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पलटी कुमार के रूप में पहचान बन चुकी है। उनका राजनीतिक सफर कई बार अपने गठबंधनों को बदलने और नीतियों में पलटी मारने से भरा रहा है।
रामविलास पासवान, जिन्हें बिहार की राजनीति में मौसम वैज्ञानिक के रूप में जाना जाता है, ने कई बार अपने राजनीतिक समीकरण बदले। उनका मुख्य उद्देश्य सत्ता में हिस्सेदारी हासिल करना रहा है। चाहे वह कांग्रेस सरकार (1996–1998) हो, NDA (1999–2002) या फिर UPA (2004–2009) सरकार, रामविलास पासवान ने हमेशा सत्ता के समीकरण को समझते हुए अपना गठबंधन बदला और सत्ता में अपनी जगह बनाई।
जीतन राम मांझी की राजनीति भी नीतीश कुमार के साथ जुड़ी रही है। 2014 में नीतीश कुमार की हार के बाद उन्होंने मांझी को मुख्यमंत्री बनाया लेकिन कुछ समय बाद मांझी ने अपने राजनीतिक तेवर दिखाए और JDU से अलग होकर HAM (Hindustani Awam Morcha) बनाई। मांझी ने कभी NDA तो कभी महागठबंधन में शामिल होकर अपनी राजनीति को चलाते रहने का रास्ता चुना।
उपेंद्र कुशवाहा पहले भाजपा के साथ मिलकर चुनाव जीत चुके थे. लेकिन फिर 2018 में NDA को छोड़कर UPA से हाथ मिला लिया और फिर 2021 में उन्होंने JDU में वापसी की। उनके दल बदलने के पीछे मुख्य कारण हमेशा व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं और राजनीतिक समीकरण रहे हैं।
चिराग पासवान ने 2020 में NDA का हिस्सा रहते हुए नीतीश कुमार के खिलाफ चुनाव लड़ा। उनके नेतृत्व में LJP पार्टी दो फाड़ हो गई एक चिराग पासवान और दूसरा पशुपति पारस। भाजपा ने भी चिराग को किनारे कर दिया और उनकी पार्टी का भविष्य संकट में आ गया। लेकिन फिर चिराग NDA के हो गए.
राजद और कांग्रेस भी बिहार की राजनीति के प्रमुख घटक रहे हैं। लालू प्रसाद यादव की RJD भाजपा के खिलाफ कभी कांग्रेस के साथ तो कभी तीसरे मोर्चे का समर्थन करती रही है। वहीं कांग्रेस भी अपनी कमजोर स्थिति के कारण कभी लालू के साथ तो कभी अकेले चुनावी मैदान में उतरी, लेकिन बिहार में सत्ता की सीढ़ी चढ़ने में वह कभी सफल नहीं हो पाई।
मतलब, आप यह कह सकते हैं कि बिहार की राजनीति में पलटी बाजी वो राजनीतिक यंत्र है, जिसका उपयोग सत्ता में बने रहने या वापसी करने के लिए किया जाता है। नीतीश कुमार इस राजनीति के सबसे बड़े चेहरों में से एक हैं, लेकिन लगभग सभी प्रमुख दल और नेता इसका उपयोग और उपभोग करते हैं.