Shubhanshu Shukla: भारत के शुभांशु शुक्ला 14 दिनों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन गए हैं। अंतरिक्ष पर जाने वाले एस्ट्रोनॉट का इंश्योरेंस दुनिया में सबसे महंगा होता है और इसकी रकम 40 करोड़ से लेकर 160 करोड़ तक हो सकती है। आज हम बताएंगे कि ये दुनिया का सबसे महंगा बीमा क्यों होता है और ये बीमा क्या-क्या कवर करता है।
Axiom-4 मिशन पर गए हैं शुभांशु शुक्ला
दरअसल, शुभांशु शुक्ला (Shubhanshu Shukla)तीन और देशों के एस्ट्रोनॉट्स के साथ 14 दिनों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन Axiom-4 मिशन पर गए हैं। अंतरिक्ष की यात्रा जोखिम होता है, इसलिए अंतरिक्ष यात्रियों, अंतरिक्ष यान और मिशन से जुड़े उपकरणों के लिए बीमा जरूरी होता है। ये बीमा मिशन से जुड़ी संस्था जैसे NASA, ISRO या निजी कंपनियां करती हैं। लॉयड्स ऑफ लंदन जैसी बीमा कंपनी आमतौर पर अंतरिक्ष यात्रा के जोखिमों को कवर करते हुए इंश्योरेंस करती हैं।
करीब 500 करोड़ रुपए में खरीदी गई है सीट
अब, शुभांशु शुक्ला (Shubhanshu Shukla) एक्सिओम मिशन-4 पर गए हैं, इसलिए उनका भी बीमा हुआ है। दरअसल भारत सरकार ने उनके लिए इस मिशन यान पर एक सीट खरीदी थी, जिसकी कीमत करीब $60 million यानी करीब 500 करोड़ रुपए है। भारत सरकार द्वारा अदा की गई इस रकम में बीमा कराने की रकम भी शामिल है।
प्रति यात्री इतनी होती है दुर्घटना बीमा राशि
वहीं, एक्सिओम स्पेस मिशन के लिए भारत सरकार ने जो रकम दी,उसमें मिशन की लागत,सीट खर्च,प्रशिक्षण और बीमा शामिल है। एक्सिओम स्पेस और स्पेस एक्स आम तौर पर अपनी निजी स्पेसफ्लाइट मिशन के यात्रियों के लिए लाइफ और एक्सीडेंट इंश्योरेंस करते हैं।Axiom मिशन में दुर्घटना बीमा राशि 42 करोड़ रुपए–168 करोड़ रुपए प्रति यात्री होती है, जिसके लिए इसका बीमा प्रीमियम करीब 10‑20 फीसदी तक जाता है।
150- 200 करोड़ तक हो सकती है राशि
चूंकि शुभांशु शुक्ला (Shubhanshu Shukla) की सीट की कीमत $60 मिलियन से ज्यादा है, इसलिए कुल बीमा कवरेज इसी राशि के मुताबिक निर्धारित की गई होगी, तो उनकी बीमा इंश्योरेंस की जोखिम राशि और ज्यादा होगी। मतलब ये है कि उनके लिए इंश्योरेंस जोखिम राशि 150 करोड़ से लेकर 200 करोड़ तक हो सकती है। हालांकि इसकी पुष्टि भी नहीं की जा सकती।
क्या-क्या कवर करता है बीमा
इस बीमा में मिशन के दौरान मृत्यु या गंभीर चोट,ट्रेनिंग या ट्रेनिंग कैंसल होने पर आर्थिक हानि, मिशन कैंसिलेशन या लंबित रहने पर अतिरिक्त जोखिम, बीमा कवर आम तौर पर मिशन की अवधि और संभावित ट्रेनिंग अवधि दोनों को शामिल करता है।
राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियां करती हैं बीमा
ये बीमा राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियां जैसे NASA, ESA, Roscosmos करती हैं। वहीं अमेरिका में NASA अपने अंतरिक्ष यात्रियों की जान-माल का बीमा कराता है। NASA अपने अंतरिक्ष यात्रियों और उनके परिजनों के लिए लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी और एक्सीडेंटल डेथ कवरेज भी देता है। अंतरराष्ट्रीय मिशन (जैसे ISS) में भागीदार देश अपनी-अपनी सरकारों या स्पेस एजेंसियों के ज़रिए अपने अंतरिक्ष यात्रियों का बीमा करते हैं।
60 के दशक में ऑटोग्राफ्स छोड़कर जाते थे अंतरिक्ष यात्री
वहीं अगर 60 के दशक की बात करें तो Apollo मिशन के दौरान NASA बीमा नहीं करा पाया था, इसलिए अंतरिक्ष यात्री मिशन से पहले अपने ऑटोग्राफ्स पर हस्ताक्षर करके छोड़ जाते थे, जिससे कि अगर कुछ हो जाए तो इस ऑटोग्राफ के जरिए वो परिवार के लिए पैसा कमा सकें। पूरी दुनिया में सिर्फ कुछ ही बीमा कंपनियां हैं जो अंतरिक्ष बीमा में हाथ डालती हैं। जैसे लायड्स ऑफ लंदन,ग्लोबल एयरोस्पेस,एक्सा एक्सएल, स्टार कंपनीज,म्युनिख रे। ये सभी कंपनियां बहुत हाई-रिस्क बीमा के लिए जानी जाती हैं।
कब से कब तक रहता है कवरेज
आमतौर पर बीमा मिशन शुरू होने से लेकर धरती पर सुरक्षित लौटने तक वैध रहता है। कुछ बीमा पॉलिसी ट्रेनिंग पीरियड यानी मिशन से पहले के हफ्तों/महीनों को भी कवर करती हैं। उदाहरण के लिए अगर कोई अंतरिक्ष यात्री (Shubhanshu Shukla) ट्रेनिंग के दौरान घायल हो जाए और बीमा में वो शामिल है तो कवरेज मिलेगा जबकि, अगर यात्री ने जानबूझकर ख़ुद को जोखिम में डाला और नशे या अनुशासनहीनता के कारण दुर्घटना,युद्ध या आतंकवाद के कारण हुई घटना,मेडिकल कंडीशन छुपाने पर यह बीमा कवरेज नहीं करता है।
कौन-कौन क्लेम कर सकता है
इस बीमा को अंतरिक्ष यात्री के परिवार के सदस्य,मिशन संचालित करने वाली एजेंसी क्लेम कर सकता है। अंतरिक्ष बीमा दुनिया का सबसे महंगा बीमा है।स्पेसफ्लाइट के एक मिशन के लिए प्रीमियम बीमा रकम का 10%–20% तक हो सकता है।
अब तक किन अंतरिक्ष हादसों में बीमा या मुआवज़ा दिया गया
अपोलो 1 हादसा (1967)
ट्रेनिंग के दौरान कैप्सूल में आग लगने से 3 अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई थी। जिसके बाद NASA ने विशेष फंड से इनके परिवारों को मुआवज़ा दिया। Apollo मिशन के शुरुआती दौर में Life Insurance Policies नहीं थीं, लेकिन बाद में NASA ने इसे अनिवार्य किया। पहले अंतरिक्ष यात्री मिशन से पहले अपने ऑटोग्राफ छोड़ते थे, ताकि उन्हें बेचकर परिवारों के लिए पैसा जुटाया जा सके।
चैलेंजर हादसा (1986)
अंतरिक्ष शटल चैलेंजर उड़ान के 73 सेकंड बाद फट गया था जिसमें 7 अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई थी। जिसके बाद NASA ने सभी परिवारों को सरकारी लाइफ इंश्योरेंस और निजी मुआवज़ा दिया था। लायड्स ऑफ लंदन और अन्य बीमा कंपनियों ने क्लेम सेटल किए। हालांकि राशि सार्वजनिक नहीं की गई, लेकिन अनुमान है $1 मिलियन (8.5 करोड़ रुपए) से लेकर $3 मिलियन (25 करोड़ रुपए) प्रति यात्री दिया गया।
कोलंबिया हादसा (2003)
स्पेस शटल कोलंबिया धरती पर लौटते समय टूटकर बिखर गया था जिसमें 7 अंतरिक्ष यात्री मारे गए। इसी में भारत की कल्पना चावला भी शामिल थीं। जिसके बाद नासा ने फेडरल एम्प्लाइज ग्रुप लाइफ इंश्योरेंस यानी FEGLI और एजेंसी के विशेष बीमा कवरेज से मुआवज़ा दिया। साथ ही U.S. Congress ने अलग से Columbia Families Trust Fund बनाया। इसमें अनुमानित बीमा राशि $2–$5 मिलियन (17 करोड़ रुपए से 50 करोड़ रुपए तक) प्रति यात्री दी गई।इसी तरह के हादसे सोवियत सोयूज़ 11 (1971) और सोयूज 1 (1967) में हुए। जिसमें सरकार ने आर्थिक सहायता दी, लेकिन बीमा राशि के बारे में कुछ सार्वजनिक नहीं किया गया।
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अंतरिक्ष बीमा को दुनिया का सबसे महंगा बीमा इसीलिए माना जाता है, क्योंकि इसमें शामिल जोखिम, लागत, और तकनीकी जटिलताएं किसी भी अन्य बीमा से कहीं ज्यादा होती हैं। अंतरिक्ष में ज़रा सी तकनीकी गड़बड़ी से पूरे मिशन की विफलता या मौत हो सकती है। स्पेस लांच, डॉकिंग, वापसी – हर चरण में मृत्यु या चोट का गंभीर खतरा है। बीमा कंपनियां जितना ज़्यादा जोखिम देखती हैं, उतना ज़्यादा प्रीमियम लेती हैं। अंतरिक्ष में “no rescue” का नियम है यानि अगर कुछ गड़बड़ हुई तो कोई बचाने नहीं आएगा। एक सैटेलाइट या इंसानी मिशन की कीमत $100 मिलियन से लेकर $1 बिलियन तक हो सकती है। इस कीमत को कवर करने के लिए बीमा भी उतने ही बड़े पैमाने का होना पड़ता है।एक्सओम या स्पेस एक्स की एक सीट ही $50–60 मिलियन में बिकती है।
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